
“हर बंदूक के पीछे एक कंधा होता है। हर कंधे के ऊपर जिंदगी की एक कहानी लेकिन, बंदूक तो दिखती है कहानी नहीं।”
इस फिल्म की कहानी के हर किरदार की अपनी एक लड़ाई है। कहानीकार की भी, आम हिंदुस्तानियों को NE (नॉर्थ ईस्ट) से बोध कराने की।
फिल्म के मुख्य किरदार अंडरकवर कॉप अमन (आयुष्मान खुराना) की लड़ाई संविधान के अनुरूप काम करने की है। ऐसे ही नार्थ ईस्ट की मुक्केबाज खिलाड़ी आईदा की लड़ाई अपने हिंदुस्तानी होने को साबित करने की है तो वहीं उसके पिता (जो एक विद्रोही है) सहित कई विद्रोहियों की लड़ाई अपने इंडियन नहीं होने की है।
इस मूवी में एक डायलॉग है “बंदूके सब एक जैसी होती है और उसकी गोलियां भी लेकिन चलाने वाले की अंगुलियां तय करती है कि कौन सी गोली जायज है और कौन सी नहीं”।
ऐसे ही हर किरदार अपनी लड़ाई को जायज ठहराता है।
इस पटकथा के लेखक अनुभव सिंहा अपनी कहानियों के माध्यम से फर्क पाटने की कोशिश करते हैं। फिल्म मुल्क में दो धर्मों के बीच, आर्टिकल 15 में जातियों के बीच, थप्पड़ में महिलाओं के साथ में हो रहे भेदभाव के माध्यम से इंसान और इंसान के बीच तो वहीं फिल्म अनेक में उत्तर पूर्व (नॉर्थ ईस्ट) के साथ हो रहे फर्क को पाटने की कोशिश करते हैं।

फिल्म का सितारा आयुष्मान खुराना एक अंडरकवर कॉप हैं। यानी ऐसा पुलिसवाला जो अपनी पहचान छुपा कर किसी खास मकसद के लिए किसी खास जगह पर गया हुआ हो।
इस पुलिस अधिकारी को एक समझौता सफल करवाने की जिम्मेदारी दी हुई है। समझौता नॉर्थ–ईस्ट के विद्रोही नेता टाईगर सांगा और भारत सरकार के बीच में होना है।
समझौता, इसलिए करवाना है क्योंकि वहां पर शांति स्थापित करनी है लेकिन क्या किसी पर कंट्रोल करना ही शांति है?
कैसे शांति स्थापित करना एक व्यापार बन जाता है और उसका परिणाम आता है ‘पीस अकॉर्ड’ यानी शांति समझौता। इन समझौतों के अंदर सब की आवाजें बंद कर दी जाती है। ध्यान रहे सुनी नहीं जाती अगर सुन ली जाए तो फिल्म में दिख रहे जॉनसन जैसे किरदार विलुप्त हो जाएंगे।
इस फिल्म के पर्दे से विदा होने से पहले आयुष्मान एक प्रश्न उठाते हैं– कहीं ऐसा तो नहीं यह पीस किसी को चाहिए ही नहीं वरना इतने सालों से एक छोटी सी प्रॉब्लम सॉल्व नहीं हुई?
फिल्म में शांति समझौता हो पाता है या नहीं यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी!

फिल्म के शूटिंग की लोकेशन शानदार है, कैमरा वर्क भी शानदार है। फिल्म के एक सीन में एक ऑफिसर जहांगीर के कश्मीर के बारे में कही हुई बात को उद्धृत करता है– "गर फिरदौस बर रूये ज़मी अस्त/ हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त" (धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, यही हैं). जो सही है। इस स्वर्ग को शांति की जरूरत है.....समझौते की नहीं।
अदाकारी के चश्मे से देखें तो हर कलाकार किरदार में जान डाल देता है।
मुक्केबाज खिलाड़ी का रोल निभा रही एंड्रिया की एक्टिंग को काफी सराहा जा रहा है। फिल्म में कुछ दृश्य ऐसे हैं जो दर्शक के रीड की हड्डी में सिहरन पैदा कर देते हैं हालांकि कुछ और होते तो दर्शक ताप को अच्छे से महसूस कर पाते।

दार्शनिक रूसो की बात को उनका युग नहीं समझ पाया लेकिन उनकी बात ने बाद में, फ्रांस के क्रांति की नींव रखी। ऐसे ही हर कहानी का अपना एक वक्त होता है। जब अंधे राष्ट्रवाद (Jingoism) की आंधी चल रही हो तब ऐसी कहानी लोगों को कम भाएगी।
हां, यह सही है कि फिल्म की कहानी शुरू में थोड़ी बिखरी हुई लगती है लेकिन आपको अंत तक बांधे रखेगी कहानी को थोड़ा और स्पष्ट कहा जा सकता था या यूं कहें कि नॉर्थईस्ट के आम लोगों के माध्यम से कहानी को कहते तो शायद और बेहतर हो सकता था।
अगर आपका दिमाग नए प्रश्नों से टकराने की कुव्वत रखता है तो आप इस फिल्म को जरूर देखिए। {जड़ से जुड़े रहने का मतलब जड़ हो जाना कदापि नहीं है}
फिल्म की दुनिया देखने के बाद आप में नॉर्थ ईस्ट को और अधिक जानने की जिज्ञासा पैदा होगी.....!!
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