जलाने का शग़ल छोड़िये महाराज...

करीब 80 दिनों से मणिपुर में अराजकता फैली हुई है। पूरे राज्य में कानून–व्यवस्था का इक़बाल ख़त्म हो गया है। यह आँधेरपन किसने फैलाया ? इस अव्यवस्था का फायदा किसे मिल रहा है ? दरिंदों को। जो नीत हैवानियत की हदें लांघते जा रहे हैं। कल से सोशल मीडिया पर एक वीडियो तैर रहा है। जिसमें मर्द जात अपनी बे-हयाई का भोंडा प्रदर्शन कर रही है। क्या वो मादरे हिंद की बेटी नहीं है ? मानवता के घुप्प अंधेरे में कितनी बहन–बेटियों को दौड़ाया जा रहा है ? नंगा। किससे जवाब माँगा जाएँ ? मर गया देश, अरे जीवित रह गए हम...

क्या सत्ता के लालच में मणिपुर को जलाया गया ? जलाने वाले लोग कौन हैं ? हिंसा पर काबू पाने के लिए हुकूमत की तरफ़ से क्या कदम उठाए जा रही हैं ?

मणिपुर

करीब 2,327 वर्ग किलोमीटर में फैले मणिपुर राज्य को भौगोलिक नज़रिये से दो भागों में बाँटा जाता है- पहला, पहाड़ी इलाका और दूसरा वैली (घाटी) क्षेत्र। वैली क्षेत्र, पहाड़ी क्षेत्र से घिरा हुआ है। मणिपुर का 90 फीसद इलाका पहाड़ी क्षेत्र के अंतर्गत आता है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मणिपुर की कुल जनसंख्या 28,55,794 है। जिसमें से 60 प्रतिशत लोग वैली में रहते हैं। मणिपुर विधानसभा में कुल 60 सीटें हैं जिसमें से 40 विधायकों का चुनाव वैली के लोग करते हैं। 

वैली में गैर–जनजातीय (non–tribal) लोगों का बाहुल्य है; जिसमें मैतेई समुदाय प्रमुख है। मैतेई समुदाय, मणिपुर की कुल आबादी में करीब 53 हिस्सा रखता है।

मैतेई समुदाय के लोग मुख्यतः हिंदू (वैष्णव) धर्म के अनुयायी हैं। और खुद को मूलनिवासी भी बताते हैं। 

वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में नागा और कुकी जैसी जनजातियाँ निवास करती हैं। पहाड़ी क्षेत्र में कुल आबादी का करीब 35 प्रतिशत हिस्सा निवास करता है। यहाँ से केवल 20 विधायक चुने जाते हैं।

विवाद कैसे शुरू हुआ ?

मैतेई समुदाय के लोगों की लम्बे समय से यह माँग थी कि उन्हें भी अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिया जाएँ। इसी मसले पर सुनवाई करते हुए मणिपुर के उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को यह निर्देश दिया कि मैतेई समुदाय को भी अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किया जाएँ। इस फैसले का जनजातीय लोग विरोध करते हैं। 3 मई को विरोध-प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन के साथ शुरू हुई हिंसा की आग फैलती ही जा रही है।

सरकार ने इस हिंसा पर काबू पाने की क्या कोशिश की?

नज़दीक से देखने पर लगता है कि सरकार इस मुद्दे पर गंभीर हुई ही नहीं। शुरू में सरकार के लोगों ने यह तर्क दिए कि यह विरोध ड्रग्स की खेती करने वाले लोगों द्वारा किया जा रहा है।

फिर एक प्रेस वार्ता में मुख्यमंत्री कुकी समुदाय के लोगों को आतंकवादी बताते हैं; जिससे पूरे विवाद की दिशा ही बदल जाती है। नृजातीय वर्गों के बीच हो रही इस लड़ाई को सीएम साहब राष्ट्रवाद बनाम आतंकवाद का रूप देकर खुद को बचाने की कोशिश करते हैं।

ठहरिए! मुख्यमंत्री का नाता किस समाज से है? मैतेई समाज से है। जिसका राज्य में बाहुल्य है।

मुख्यमंत्री यह मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं कि ये विवाद दो नृजातीय वर्गों के बीच का है। क्या मुख्यमंत्री इस बात से अनजान थे ? नहीं, बिल्कुल नहीं। चूँकि वो फ़रवरी, 2023 से ही इस काम पर लग गए थे। बाँटों और राज करो के रास्ते। मैतेई बनाम अन्य।

फ़रवरी में सरकार ने अवैध ड्रग्स कारोबार और अवैध घुसपैठ करने वालों के खिलाफ एक अभियान शुरू किया। क्या इस अभियान में एक खास तबके को निशाना नहीं बनाया गया?

जब म्यांमार से अवैध शरणार्थी भारत में आते हैं तब मिजोरम की सरकार उनका स्वागत करती है और मणिपुर की सरकार का रुख न्यारा रहता है। बीजेपी मिजोरम की सरकार में है, फिर यह अलग–अलग नीति क्यों अपनाई?

सरकारी रिपोर्ट की माने तो मणिपुर में बेरोजगारी की दर सबसे अधिक है। युवाओं के पास रोजगार के लिए सरकारी नौकरियों के अलावा कोई बेहतर विकल्प नहीं है। देश की तरह राज्य में भी व्यापक स्तर पर असमानता पैर पसार रही है। क्या ये घटनाएँ ध्यान भटकाने की कोशिशें नहीं है? 

यह सही है कि पहाड़ी इलाकों में व्यापक स्तर पर ड्रग्स की खेती की जाती है पर क्या हिंसा फैलने के बाद भी ऐसे बयान देने जरूरी थे?

परंपरा तो यही कहती है कि जब राज्य की बागडोर मुख्यमंत्री नहीं संभाल पाए तो उसे नैतिक आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिए। लेकिन, मणिपुर के मुख्यमंत्री क्या कर रहे थे? 

इस तरह के कई सवाल सत्ता से पूछे जाने चाहिए। लेकिन, मीडिया नतमस्तक है। आज प्रधानमंत्री ने बयान दिया है; सवाल यह उठता है कि 80 दिनों तक एक भी शब्द क्यों नहीं फूटा?

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गाँव का बाशिंदा, पेशे से पत्रकार, अथातो घुमक्कड़...