मंटो के अफ़सानों में विभाजन की हक़ीकत

सुख़नवर जावेद अख्तर साहब की एक नज़्म यूँ है कि

"जो बात कहते डरते हैं सब, तू वह बात लिख

इतनी अंधेरी थी न कभी पहले रात लिख

जिनसे क़सीदे लिखे थे, वह फेंक दे क़लम

फिर खून-ए-दिल से सच्चे क़लम की सिफ़ात लिख

जो रोज़नामों में कहीं पाती नहीं जगह

जो रोज़ हर जगह की है, वह वारदात लिख

जितने भी तंग दायरे हैं सारे तोड़ दे

अब आ खुली फ़िज़ाओं में अब कायनात लिख

जो वाक़ियात हो गए उनका तो ज़िक्र है

लेकिन जो होने चाहिए वह वाक़ियात लिख

इस बाग़ में जो देखनी है तुझ को फिर बहार

तू डाल-डाल से सदा, तू पात-पात लिख.”

अगर इस नज़्म को साहित्य की लंबी–चौड़ी दुनिया में कोई पूरी तरह से चरितार्थ करता है, तो वो है सआदत हसन मंटो। जब समाज अदब के झूठे परदे के पीछे छिपने की कोशिश कर रहा था तब मंटो ने उसकी नंगी तसवीर खींच कर सबके सामने रख दी। कुछ लोगों ने अश्लीलता कहा, तो कुछ लोगों ने कोरी–कल्पना कहा। पर मंटो ने इन सब बातों पर ध्यान नहीं दिया। पूरी फक्कड़ता के साथ लिखा; बिलकुल इसी भाव से कि क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे ?

जब हिंदुस्तान का विभाजन हुआ तब मंटो ने कई अफसाने लिखे थे। उन अफसानों को लिखे करीब–करीब 75 बरस होने को आएँ हैं। आज भी उन्हें पढ़कर विभाजन के दौर की हकीकत को समझा जा सकता है।

मंटो के अफसानों में महिलाओं का दर्द 

किसी भी तरह के युद्ध या बवाल का पहला शिकार कौन होता है ? जवाब लिखने की शायद ज़रूरत नहीं है। ‘नारी और युद्ध’ शीर्षक से लिखे निबंध में महादेवी वर्मा, युद्ध के संदर्भ में महिलाओं के पक्ष को विस्तार से रखती हैं। बहरहाल, मंटो के अफसानों पर आते हैं। मंटो की कई कहानियों में समाज की हकीकत को बयाँ किया है। अमृतसर से एक स्पेशल ट्रेन पाकिस्तान की तरफ जाती है। उस ट्रेन में सकीना और उसके पिता सिराजुद्दीन सवार हो जाते हैं। वहाँ कुछ लोग सिराजुद्दीन को बेहोश कर देते हैं। जब होश आता है तब उनकी नौजवान बेटी गायब थी। सिराजुद्दीन रजाकार नौजवानों से अपनी बेटी का पता लगाने की गुजारिश करता है। हुलिया बताता है “गोरा रंग है और बहुत ही खूबसूरत है... मुझ पर नहीं अपनी माँ पर थी... उम्र 17 बरस के करीब है.... आँखें बड़ी-बड़ी.... बाल स्याह, दाहिने गाल पर मोटा सा तिल... मेरी इकलौती लड़की है। ढूँढ लाओ खुदा तुम्हारा भला करेगा।”आठ नौजवानों की मंडली को लड़की मिल जाती है। पर वो उसके पिता के पास नहीं लेकर जाते हैं।एक दिन रेलवे पटरी के पास एक लड़की मिली। सिराजुद्दीन उसके पीछे–पीछे भाग कर अस्पताल गया। अस्पताल के एक कमरे में लाश पड़ी है। सिराजुद्दीन छोटे–छोटे कदम उठाता उसकी तरह बढ़ा। कमरे में दफअतन रोशनी हुई। सिराजुद्दीन ने लाश के ज़र्द चेहरे पर चमकता हुआ तिल देखा और चिल्लाया “सकीना!”डॉक्टर ने स्ट्रेचर पर पड़ी हुई लाश की तरफ देखा उसकी नब्ज टटोली और सिराजुद्दीन से कहा खिड़की खोल दो...सकीना की मुर्दा जिस्म में जुंबिश पैदा हुई। बेजान हाथों से उसने इज़ारबंद खोला और शलवार नीचे सरका दी...कुछ लोग इस पर नग्नता का आरोप लगाएँगे, लेकिन उससे सच्चाई बदल नहीं जाएँगी। ‘ठंडा गोश्त’ कहानी में ईशर सिंह नाम का एक किरदार है। जो विभाजन के दौरान मचे कोलाहल के माहौल में घर लूटने गया था। पहले भी कई घरों से ज़ेवर लूट कर लाया था। एक घर में आठ लोग थे। उसने सात को मार दिया। एक लड़की को उठाकर लाया। उसके साथ सोने को कोशिश की पर वो लाश थी...बिलकुल ठंडा गोश्त।

लाल बत्ती वाला इलाका और मंटो

मंटो ने वेश्याओं को भी अपनी कहानी में जगह दी है। प्रो. कृष्ण कुमार अपनी किताब 'चूड़ी बाजार में लड़की' में वेश्यावृति को पुरुषों की स्वतंत्रता का प्रतीक बताते हैं। जो कि सही मालूम पड़ता है। इसीलिए पुरुष वर्ग इस मुद्दे पर बात करने से बचता है। ‘काली शलवार’ कहानी में सुल्ताना नाम की एक वेश्या की दास्तां है। विभाजन ने इन महिलाओं को जिंदगी तो और खराब कर दी थी। पिंजरे में कैद सुल्ताना घूट–घूट कर जीने को मजबूर है।

सिर्फ एक लकीर

हाँ, सिर्फ एक लकीर। वो भी ऑफिस में बैठकर खींच दी। एक तरफ हिंदुस्तान दूसरी तरफ पाकिस्तान। ‘टोबा टेक सिंह’ कहानी में मंटो इसी लकीर पर सवाल खड़े करते हैं। विभाजन के बाद दोनों हुकूमतों के बीच एक समझौता होता है कि पागलों की अदला–बदली की जाएँगी। मुस्लिम पागलों को पाकिस्तान भेजा जाएँगा और हिंदू–सिख पागलों को हिंदुस्तान। एक टोबा टेक सिंह नाम का पागल है। जिसका मूल नाम बिशन सिंह है। वो यह जानना चाहता है कि टोबा टेक सिंह कहाँ है? ऐसे ही कई पागलों की मनोदशा को इस कहानी के कथानक की बसावट में बिछाया है।टोबा टेक सिंह, पिछले पंद्रह वर्षों तक अपने पैरों पर खड़ा था। सोया नहीं था। “सूरज निकलने से पहले बिशन सिंह के हलक से एक फलक –शिगाफ चीख निकली इधर-उधर से कई अफसर दौड़े आए और देखा कि वह आदमी जो 15 बरस तक दिन-रात अपनी टांगों पर खड़ा रहा था, औंधे मुंह लेटा है। उधर खारदार तारों के पीछे हिंदुस्तान था.... इधर वैसे ही तारों के पीछे पाकिस्तान दरमियान में जमीन के एक टुकड़े पर जिसका कोई नाम नहीं था टोबा टेक सिंह पड़ा था।”

जब विभाजन का भूत इंसान के दिमाग़ पर सवार हो जाता है, तब उसका शिकार जानवर भी हो जाता है। ‘टोटवाल का कुत्ता’ कहानी में मंटो ने इसका जिक्र किया है। एक कुत्ते का हिंदुस्तानी सैनिक नाम रखते हैं। कुत्ता पाकिस्तानी कैंप की तरफ़ चला जाता है। उधर से गोली मार दी जाती है। बेजुबान जानवर इंसानों की घृणा का शिकार हो जाता है।

ऐसे ही कई अफ़सानों में विभाजन की पीड़ा को उकेरा है। विभाजन की इस हकीकत को मंटो को कहानियों के माध्यम से महसूस किया जा सकता है। 

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गाँव का बाशिंदा, पेशे से पत्रकार, अथातो घुमक्कड़...