किसी शख्सियत का अधूरा ज्ञान उस शख्सियत के साथ अन्याय है. आजकल के अधिकांश युवाओं के मन में भगत सिंह की छवि, हाथ में बंदूक लिए और टोपी पहने एक युवक की है लेकिन वे उनके विचारों से बहुत कम परिचित हैं. आज आपके लिए पेश है भगत सिंह के विचारों पर प्रोफेसर चमनलाल जी से बातचीत –
सवाल:–सर, जब मैं आपके बारे में पढ़ रहा था तब मुझे मालूम हुआ कि आप ‘हिंदी’ के प्रोफेसर थे तो फिर यह भगत सिंह के बारे में अध्ययन का सिलसिला कैसे शुरू हुआ?
जवाब:–इस देश के बच्चे–बच्चे के मन में बचपन से ही भगत सिंह के बारे में एक छवि बन जाती है. ऐसे ही मैं भी भगत सिंह के बारे में अध्ययन के लिए प्रेरित हुआ. भगत सिंह के साथ अन्य क्रान्तिकारियों के बारे में भी पढ़ा. वहीं मेरी रूचि हिंदी साहित्य के अध्ययन में भी थी तो एकेडमिक अध्ययन और अध्यापन हिंदी साहित्य में रहा और विशेष रूचि भगत सिंह पर रही खासकर भगत सिंह के दस्तावेजों पर.
सवाल: भगत सिंह के सपनों का भारत कैसा था?
जवाब:– (एक मुस्कुराहट के साथ) भगत सिंह के सपनों का भारत तो कहीं नजर नहीं आ रहा है. और ना ही पता है कि कब बनेगा. भगत सिंह लेनिन के जैसा भारत बनाना चाहते थे क्योंकि वह एक समाजवादी क्रांतिकारी थे. स्वतंत्रता संग्राम के कई अन्य नायकों के सपनों का भारत भी दूर की बात है.
न ही सुभाष चंद्र बोस के सपनों का भारत है ना हीं नेहरू के सपनों का भारत . अभी की व्यवस्था पूरी तरह से एक जन विरोधी व्यवस्था है. जितनी पुलिस अंग्रेजों के समय उत्पीड़क थी उतनी ही आज है. मने ‘लोकतंत्र एक ढकोसला है’. आज का भारत कॉरपोरेट का भारत है. अंबानी और अडानी का भारत है. भगत सिंह तो किसानों और मजदूरों के साथी थे.
किसानों ने जन संघर्ष किया तब किसानों के लिए भगत सिंह ही सबसे बड़ी प्रेरणा थे. इतने बड़े-बड़े किसान और मजदूर आंदोलन होंगे, देश में तब जाकर भगत सिंह के सपनों का भारत बनेगा. कितना बनेगा अब यह कहना तो मुश्किल है.
सवाल:– अलग–अलग विचारधारा वाले दल पुरानी विरासत को अपनाने की कोशिश करते हैं. वह चाहे आज किसी भी विचारधारा के हो. इन तमाम दलों द्वारा भगत सिंह को एक छोट–सी श्रद्धांजलि देने की कोशिश की जाए तो ऐसे कौन से कार्य हैं जो आज की सरकारों को करना चाहिए?
जवाब:–ऐसा है कि यह तो विश्व के अधिकांश देशों में होता है जो व्यक्ति देश के नायक बन जाते हैं किसी जन संघर्ष में तो उनकी लोकप्रियता अधिक हो जाती है. लोगों के मन में उनकी एक छवि बन जाती है. उन छवियों का प्रयोग राजनीतिक दल लोगों से वोट लेने के लिए करते हैं. छवियों में विचारों की बात नहीं होती है आज देखिए कांग्रेस पार्टी न महात्मा गांधी के विचार पर है ना नेहरू के और ना ही सुभाष चंद्र बोस के. यह तो उनके अपने ही जननायक थे. भगत सिंह के पिताजी भी स्वतंत्रता संघर्ष के सेनानी थे और वह भी कांग्रेस से जुड़े थे. तो आजकल छवियों को पकड़ लेते हैं विचारों को नहीं पकड़ते हैं. इन्हीं छवियों से मिथक बनाकर झूठ मुठ की कहानियां गढ़ ली जाती है.
सवाल:– भगत सिंह के जमाने में मीडिया की क्या भूमिका थी?
जवाब:–भगत सिंह के समय आज जैसी परिस्थितियां तो नहीं थी लेकिन तब भी सांप्रदायिकता और झूठी खबरें मीडिया द्वारा फैलाई जाती थी. आज मीडिया में एक नया अंग सोशल मीडिया भी जुड़ गए हैं जहां पर कुछ भी वायरल कर दिया जाता है और किसी की भी जान ले ली जाती है. पुलिस खंडन करती रहती हैं लेकिन तब तक वह न्यूज़ फैल जाती हैं. अब ALT NEWS जैसे प्लेटफार्म है लेकिन उनकी भी पहुंच सीमित है. अब सच और झूठ के बीच में अंतर करना पहले से ज्यादा कठिन हो गया है.
सवाल:–आज के समय की सांप्रदायिकता को अगर हमारे स्वतंत्रता सेनानी देखते हैं तो उन्हें कैसा लगता?
जवाब:–जो लोग सांप्रदायिकता के नाम पर लड़ते हैं वह भगत सिंह और महात्मा गांधी दोनों के कातिल है. गांधी को तो एक सांप्रदायिक व्यक्ति ने मारा ही था.
भगत सिंह को फांसी तो अंग्रेजों ने दी थी लेकिन यह सांप्रदायिक लोग उन्हें रोज मारते अब खुद सोचे क्या कभी भगत सिंह ने, गांधी ने, अंबेडकर ने, सुभाष चंद्र बोस ने सोचा होगा कि हिंदुस्तान ऐसा बन जाएगा?
सवाल:–भगत सिंह पर आपके द्वारा संपादित पुस्तक में एक प्रसंग है कि भगत सिंह अपने साथियों से मिलने के लिए लाहौर जेल जाते हैं. वहां पर उनके एक साथी सब की सजा सुनाते हैं लेकिन भगत सिंह के मामलों में चुप हो जाते हैं. भगत सिंह तब हंसते हुए कहते कि चुप क्यों हो गए. बोलो भगत सिंह ‘सजा-ए-मौत’ सर, वो नास्तिक भी थे तो उन्हें स्वर्ग की भी उम्मीद नहीं थी. यह मौत से उन्होंने डर कैसे खत्म किया?
जवाब:– भई मौत से डर उनकी परवरिश के कारण खत्म हुआ था. त्याग और बलिदान उनके परिवार से उन्हें विरासत में मिले थे. हालांकि वह अमीर परिवार में पैदा हुए थे लेकिन उनके पुरखों ने कभी भी अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार नहीं की थी. उनके एक चाचा की 23वर्ष की उम्र में जेल में मृत्यु हो गई थी. बाकी दादा अर्जुन सिंह, पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह देश के लिए हमेशा बलिदान देने के लिए तैयार रहने वालों में से थे.
बचपन से ही इतना कुछ देखा था वह 12 साल की उम्र में जलियांवाला बाग की घटना के दो दिन बाद वहां चले गए थे.
मुख्य कारण था अगर हम कुर्बान हो जाएंगे तो लाखों लाख लोग जाग जाएंगे.
फांसी से पहले उनके साथियों ने कहा कि आप बच सकते है. भगत सिंह ने कहा कि वह ऐसा कुछ नहीं करेंगे क्योंकि लोगों को लगेगा कि वह डर गया है. मेरे लिए इससे ज्यादा क्या चाहिए माताएं अपने बच्चों के नाम मेरे नाम पर रखने लगी है और इंकलाब का नारा भारत सहित पूरे विश्व में गूंजने लगा है.
भगत सिंह के जैसे ही बेखौफ थे दक्षिण अमेरिका के ‘चे ग्वेरा’.
चे ग्वेरा को जब बोलीविया के जंगलों से पकड़ लिया तो पकड़ने वाला खूंखार आदमी भी उन पर गोली नहीं चला पाया. उसको एक बोतल व्हिस्की पिलाई पर फिर भी उसके हाथ काप रहे थे. तभी चे ग्वेरा ने कहा ‘कोवर्ड शूट मी’ यानी डरपोक मुझे गोलीमार. तभी जाकर वो मार पाया.
तो ऐसी महान शक्तियों से मौत डरती थी वो मौत से नहीं डरते थे.
सवाल:– महात्मा गांधी को घेरने के लिए कई बार उनपर आरोप लगाया जाता है कि उन्होंने भगत सिंह की फांसी को नहीं रुकवाया?
जवाब:– यह सवाल ही गलत है. भगत सिंह का अपना रास्ता था और महात्मा गांधी का अपना. उनको भगत सिंह की फांसी के खिलाफ एक नैतिक स्टैंड लेना चाहिए था जो उन्होंने नहीं लिया.
एक बार उन्होंने अपने पिता को भी पूरी तरह से डांटा था. उन्होंने पत्र में लिखा था कि अगर आप मेरे पिता नहीं होते तो मैं आपको शत्रु समझता. हमारी अपनी जिंदगी है. हम उसको कब और कैसे कुर्बान करें वो हम पर निर्भर करेगा.
सवाल:– आज के विद्यार्थियों को आप ऐसी कौनसी पुस्तकों का नाम बताना चाहेंगे जिससे वह भारत को समझ सके?
जवाब:–आज की युवा भगत सिंह की रचना पढ़ लेंगे तो उनकी आंखें खुल जाएगी. जितना वे व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के अंधकार में डूबे हुए हैं उससे उबरने का एक ही रास्ता है भगत सिंह की रचनाओं को पढ़ना. 135 रचनाएं हैं कुल भगत सिंह की. पढ़े और तर्क करें. तर्क के आधार पर उनका खंडन करें यानी तर्कशील बनो आंख मूंदकर किसी पर विश्वास ना करो.
सवाल:– देश का दुर्भाग्य था कि भगत सिंह संविधान लागू होने से लगभग दो दशक पहले ही शहीद हो गए अगर भगत सिंह जिंदा होते तो भारत के संविधान का रूप क्या होता?
जवाब:–सोवियत यूनियन की तरह एक समाजवादी देश बनाते. उनके संविधान में पूंजीपतियों के लिए कोई जगह नहीं होती. वह जमीदारों की सारी संपत्ति जब्त कर लेते, सारे कारखाने राष्ट्रीयकृत होते यानी उन पर मजदूरों का अधिकार होता. कुल मिलाकर भगत सिंह वैसा ही संविधान बनाना चाहते थे जैसा कि लेनिन ने रूस में बनाया था.
सवाल:–क्योंकि आपकी एक पहचान जेएनयू से भी जुड़ी हुई है. जेएनयू के बारे में आम लोगों के बीच में अच्छी छवि नहीं ऐसा क्यों?
जवाब:–आम लोगों को इन सात साल में अकल का अंधा बना दिया गया है!
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