काठियावाड़ की ‘गंगा’ से ‘गंगुबाई काठियावाड़ी’ तक का सफर!

सब समाज अच्छी, सुशील और संस्कारी महिला की उम्मीद करता हैं परंतु ये शर्ते पुरुष के मामले में कहीं विलुप्त सी हो जाती है।

वेश्यावृति का काम करने वाली महिला को हेय नजर से देखा जाता है लेकिन इसको बढ़ावा देने में सबसे बड़ा भागीदार पुरुष सफेद कपड़ों में बिना दाग के घूमता है। यह सोच की संकीर्णता है...

“तन के भूगोल से परे एक स्त्री के

मन की गांठे खोलकर

कभी पढ़ा है तुमने

उसके भीतर का

खौलता इतिहास”_ निर्मला पुतुल

काठियावाड़ की एक ऐसी ही महिला गंगा का खौलता इतिहास बताने की कोशिश की गई है हुसैन जैदी की पुस्तक माफिया क्वीन पर बनी फिल्म गंगुबाई काठियावाड़ी में।

फिल्म में गंगा नाम की एक महिला अभिनेत्री बनना चाहती है। इसके लिए भरोसा करती है पुरुष वर्ग के प्रतिनिधि, उसके अपने प्यार पर लेकिन प्रतिनिधि फिर एक बार धोखा देता है।

गंगा कभी देवानंद से नहीं मिल पाती है। गंगा अब गुजराती पहचान के साथ गंगुबाई काठियावाड़ी बन जाती है। यह फिल्म गंगा से गंगुबाई काठियावाड़ी तक का सफर है।

इस फिल्म में एक छवि को मजबूत करने की कोशिश की जाती है। फिल्म अंत तक बांधकर रखने की कोशिश करती है। हालांकि ऑडियंस को कोई खास संदेश देने में सफल नहीं हो पाती है।

फिल्म में एक्टिंग सभी की बेहतरीन है। वहीं डायलॉग डिलीवरी भी अच्छी है।

आप अगर गंगुबाई काठियावाड़ी को जानना चाहते है तो इस फिल्म को देख सकते हैं अन्यथा समय को कीमती समझ के दूसरा काम कर सकते हैं।


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गाँव का बाशिंदा, पेशे से पत्रकार, अथातो घुमक्कड़...