
यह सिर्फ एक फिल्म नहीं है। यह एक दुनिया है। इस दुनिया को रचा गया है, ‘मालगुडी डेज’ वाले आर.के. नारायण के उपन्यास ‘गाइड’ के आधार पर। इसके मुख्य किरदारों में शामिल है मशहूर अदाकारा वहीदा रहमान और आनंद के देव–देव आनंद।
देव आनंद मेवाड़ की धरा के, प्यारे शहर, उदयपुर के रहने वाले गाइड है। जिसकों उदयपुर के लोग प्यार से राजू गाइड कहते है। राजू के पास दुनिया के कोनें–कोनें से लोग आते है। उन लोगों को मेवाड़ की गलियों में उन इमारतों से परिचय करवाता है जिनसे यह दुनिया परिचित नहीं थी।
उसके पास एक नए मेहमान आने वालें थे। जिनकी अभी–अभी शादी हुई थी। लेकिन यह शादी असल में एक सौदा था। एक देवदासी अपनी बेटी को इसलिए ब्याह रही थी ताकि उसे अच्छा जीवन मिले। आदमी अपनी हवस के लिए।
नालिनी की शादी होने के बाद वो मिसेज मार्को बन जाती है। मिसेज मार्को बनने के बदले उन्हें अपना शौक–डांस छोड़ना पड़ता है।
मेहमान मार्को साब अजंता और एलोरा जैसी गुफा ढूंढना चाहता है लेकिन पत्थर की मूरत ढूंढते–ढूंढते अपने जीवनसाथी को ना जीवन समझा और ना ही साथी।
राजू एक दिन मिसेज मार्को को कालबेलियों के गलियों में घुंघरू बांध कर ले जाता है। घुंघरू की खनक फिर एक बार नालिनी के सपने को ताल देती है। फिर जीने की तमन्ना आती है......
यह क्या! इंसान बदल जाता है?
जरूरतें बदलती है, पसंद–नापसंद बनती है।
राजू जो फिल्म के शुरुआत में था वो अंत में नहीं है। क्या राजू स्वार्थी था? अगर स्वार्थी था तो पूरे शहर से क्यों लड़ा था?
अब राजू को कौन गाइड करेगा? राजू कहां जा रहा है? वहां कौन है तेरा मुसाफिर जायेगा कहां....
आइए मोहतत कराता हूं! हिंदी सिनेमा की सबसे बेहतरीन फिल्म से......गाइड।
****देवदासी वो महिलाए होती थी जिन्हें मंदिर या मठों में भेज दिया जाता था। इनका उतराधिकारी उनकी बेटियां होती थी। इन्होंने भारतीय संगीत और नृत्य को खूब ऊंचाई दी। आज़ादी के बाद इन्हे कानून के द्वारा शादी का अधिकार दिया परंतु दुखद है फिर भी कई जगह विद्यमान है। फिर शायद एक मुथुलक्ष्मी रेड्डी की जरूरत है.....

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