‘मंटो’ अब भी हमे कुछ कह रहे हैं!

सआदत हसन मंटो का जन्म पंजाब के लुधियाना में हुआ था। उन्होंने कई अफसाने (कहानियां) लिखें। भारत–पाकिस्तान विभाजन के समय आम लोगों के दर्द पर लिखें अफसाने काफ़ी प्रसिद्ध हुए थे।

उनकी कलम पर ‘सांप्रदायिकता की लहर’ के बीच में भी कोई ज़हर नहीं चढ़ा। तभी वो सच का आईना लेकर अंतिम समय तक खड़े रहें।

‘सहादत हसन’ की मृत्यु 18 जनवरी 1955 को हो गई थी लेकिन ‘मंटो’ अभी भी जिंदा हैं।

क्योंकि ‘मंटो’ केवल एक व्यक्ति की आवाज़ नहीं थे। मंटो विभाजन के खिलाफ बोलती एक कलम की आवाज़ थे। जो विभाजनकारी ताकतों को अच्छी नहीं लगती थी।

यह आवाज विभाजन की बुनियाद को खारिज करती थी। ऑफिस में बैठकर खींची गई लकीरों को नकारती थी।

मंटो की आवाज़ मरने वालों का धर्म नहीं बताती थी, ‘बताती थी एक इंसान का दर्द।’

विभाजन के उस दौर में मंटो की कई कहानियां प्रसिद्ध हुए जैसे ठंडा गोश्त, टोबा टेक सिंह, बू इत्यादि।

टोबा टेक सिंह की कहानी में भारत और पाकिस्तान की सरकारें यह निर्णय लेती हैं कि पागलों की अदला–बदली की जाएंगी। इस कहानी का किरदार बिशन सिंह एक सिख है जिसे सरकारें हिंदुस्तान भेजती है। परंतु उसका गांव टोबा टेक सिंह पाकिस्तान में रह जाता है। बिशन सिंह उन दो देशों के बीच की कटीली तारों में रह जाता है।

‘हिंदुस्तान जिंदाबाद’! ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’! के उन चीखते चिल्लाते नारों के बीच में सांप्रदायिकता के ज़हर के विरुद्ध, अपनी कहानियों से लड़ने पर उन्हें हिंदुस्तान में तीन बार और पाकिस्तान में तीन बार अदालत का सामना करना पड़ा।

आम लोगों के दर्द की जगह, विभाजन को बढ़ावा देने वाले हुक्मरानों को मंटो की आवाज़ पसंद नहीं थी।

परंतु मंटो की बाते आज भी जिंदा है, क्योंकि समाज आज भी नंगा है। महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों में कमी नहीं आई है, सांप्रदायिक ताकतें ज़हर के बीज बोकर फिर पहले जैसी खेती करना चाहती है।

अपनी पत्नी के साथ।

मंटो एक आईना लेकर खड़ा है।1945–50 के उस दौर में मंटो की बाते पसंद नही आई थी, परंतु आज भी उनकी बातों में उतनी ही सच्चाई है। इसलिए मंटो आज भी जिंदा है। मंटो आज भी हमे कुछ कह रहा है......ध्यान से सुनिए।

“हिदुस्तान जिंदाबाद,पाकिस्तान जिंदाबाद इन चीखते चिल्लाते नारो के बीच कई सवाल थे।मैं इसे अपना मुल्क कहूँ? लोग धड़ाधड़ क्यों मर रहे हैं– इन सब सवालों के एक मुख्तलिफ जवाब था। एक हिंदुस्तानी जवाब, एक पाकिस्तानी जवाब एक हिन्दू जवाब और एक मुसलमान जवाब। कोई इसे 1857 के खंडहर में ढूंढता है तो कोई इसे मुगलिया हुकूमत के मलबे में टटोलने की कोशिश करता है। सब पीछे देख रहे हैं लेकिन, आज के कातिल लहू और लोहे से तारीख लिखते जा रहे हैं।ये मजनून सुनाते सुनाते आप सब से मार खा लूंगा लेकिन हिन्दू-मुस्लिम फसाद में अगर कोई मेरा सर फोड़ दे तो मेरे खून की हरेक बूंद रोती रहेगी।”

‘मंटो’ ने विभाजन का दर्द झेला था। आज की पीढ़ी को इस दर्द का एहसाह नहीं है।

यह वीडियो देखिए–

इसी सप्ताह का यह वीडियो है, इस दर्द को महसूस कीजिए, जहां भाई से भाई कितने वर्ष बाद मिल रहे हैं

यह विभाजन का दर्द है। मंटो ऐसे ही विभाजन के खिलाफ़ थे, जिसने भाई को भाई से.... अपनो से अलग कर दिया।


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गाँव का बाशिंदा, पेशे से पत्रकार, अथातो घुमक्कड़...