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  • Gandhi's ‘Oceanic Circle’Gandhi's ‘Oceanic Circle’

    Gandhi's ‘Oceanic Circle’

    साथियो, प्रोफेसर दिलीप सिमियन द्वारा गांधी शांति प्रतिष्ठान में दिया गया व्याख्यान आप यहाँ से पढ़ सकते हैं।

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  • अदने आदमी की जीवन यात्रा के 25 वर्षअदने आदमी की जीवन यात्रा के 25 वर्ष

    अदने आदमी की जीवन यात्रा के 25 वर्ष

    लोग सफ़ल किरदारों की कहानी सुनना पसंद करते हैं। मैं न तो कहानी सुना रहा हूँ और ना ही खुद को सफ़ल या असफ़ल घोषित कर रहा हूँ। केवल अपने अंदर की बेकली को बाहर निकालने की कोशिश कर रहा हूँ...!

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  • OPTIONS FOR THE WELFARE STATE: Public Investment Vs Insurance-Based ModelsOPTIONS FOR THE WELFARE STATE: Public Investment Vs Insurance-Based Models

    OPTIONS FOR THE WELFARE STATE: Public Investment Vs Insurance-Based Models

    Even though the Constitution of India embodies the spirit of a welfare state committed to securing justice and wellbeing of all citizens, a specific mention of the welfare state is contained in the Directive Principles of the State Policy in Part IV (Articles 36 to 51). The Drafting Committee of the Constitution identified these as the ultimate objectives of the nation. These objectives included many things, from abolition of untouchability to removal of discrimination and legal disabilities on the women.

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  • पुस्तक समीक्षा: “जाति और लिंग— दलित, सवर्ण और हिंदी प्रिंट संस्कृति”पुस्तक समीक्षा: “जाति और लिंग— दलित, सवर्ण और हिंदी प्रिंट संस्कृति”

    पुस्तक समीक्षा: “जाति और लिंग— दलित, सवर्ण और हिंदी प्रिंट संस्कृति”

    गोरे लोगों के दबदबे वाले मुल्क में सैकड़ों वर्षों की जद्दोजहद के बाद एक ‘ब्लैक पुरुष’ राष्ट्रपति बना; तो भारत में भी उसकी खूब सराहना की गई। लेकिन, इसी भारतीय समाज के बीच मायावती का जिक्र आते ही एक खास तरह की चुप्पी सा जाती है। ऐसा क्यों ? जहाँ ओबामा केवल एक तरह के ज़ुल्म का शिकार थे वहीं मायावती दोहरे ज़ुल्म की भुक्तभोगी; एक तो दलित और ऊपर से महिला।

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  • मंटो के अफ़सानों में विभाजन की हक़ीकतमंटो के अफ़सानों में विभाजन की हक़ीकत

    मंटो के अफ़सानों में विभाजन की हक़ीकत

    सुख़नवर जावेद अख्तर साहब की एक नज़्म यूँ है कि

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  • प्रेमचंद के साहित्य में कौमी एकता की गूँजप्रेमचंद के साहित्य में कौमी एकता की गूँज

    प्रेमचंद के साहित्य में कौमी एकता की गूँज

    हिंदुस्तान में ‘सांप्रदायिकता’ और ‘राष्ट्रवाद’ का विकास साथ–साथ हुआ। दोनों धाराएँ अपने शिखर पर एकसाथ पहुँची। नतीजा यह हुआ कि आज़ादी के साथ–साथ विभाजन को भी झेलना पड़ा।

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  • डॉ. नामवर सिंह : हिंदी के ‘पुनीत’ आलोचकडॉ. नामवर सिंह : हिंदी के ‘पुनीत’ आलोचक

    डॉ. नामवर सिंह : हिंदी के ‘पुनीत’ आलोचक

    नामवर जी का जीवन–फ़लक इतना विस्तृत है कि उसे समेटना मेरे जैसे ख़ाकसार के बस की बात नहीं है। फिर भी, उनके जन्मदिन के मौके पर याद किये बगैर रहा नहीं गया।

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  • ‘कबीर नारी कुंड नरक का...’ नारी के प्रति कबीर का नज़रिया‘कबीर नारी कुंड नरक का...’ नारी के प्रति कबीर का नज़रिया

    ‘कबीर नारी कुंड नरक का...’ नारी के प्रति कबीर का नज़रिया

    कबीर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। यानी कि कबीर के अनेक रूप देखने को मिलते हैं। उच्च कोटि की आध्यात्मिकता, निःस्वार्थता, निर्भयता और संकीर्ण मोह का तिरस्कार जैसे गुण कबीर को संत की श्रेणी में रखते हैं। कबीर का कवि रूप किसी का सानी नहीं है। इसी से प्रभावित हो कर आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को ‘वाणी के डिक्टेटर’ कहा था। काव्य–संवेदना में उनके समकक्ष कोई कवि नहीं ठहरता है। साहस का स्तर इतना ऊँचा है कि समाज में पसरी हर तरह की रूढ़ि को दुत्कारते हैं। उनकी यह ‘घरफूँक’ मस्ती इन्हें गांधी, आंबेडकर और बुद्ध जैसे समाज सुधारकों की श्रेणी में रखती है।

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  • जलाने का शग़ल छोड़िये महाराज...जलाने का शग़ल छोड़िये महाराज...

    जलाने का शग़ल छोड़िये महाराज...

    करीब 80 दिनों से मणिपुर में अराजकता फैली हुई है। पूरे राज्य में कानून–व्यवस्था का इक़बाल ख़त्म हो गया है। यह आँधेरपन किसने फैलाया ? इस अव्यवस्था का फायदा किसे मिल रहा है ? दरिंदों को। जो नीत हैवानियत की हदें लांघते जा रहे हैं। कल से सोशल मीडिया पर एक वीडियो तैर रहा है। जिसमें मर्द जात अपनी बे-हयाई का भोंडा प्रदर्शन कर रही है। क्या वो मादरे हिंद की बेटी नहीं है ? मानवता के घुप्प अंधेरे में कितनी बहन–बेटियों को दौड़ाया जा रहा है ? नंगा। किससे जवाब माँगा जाएँ ? मर गया देश, अरे जीवित रह गए हम...

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  • ‘तमस’ और आज का हिंदुस्तान‘तमस’ और आज का हिंदुस्तान

    ‘तमस’ और आज का हिंदुस्तान

    करीब 50 बरस पहले भीष्म साहनी ने ‘तमस’ नाम से एक उपन्यास लिखा था। यह हमारे समाज का दुर्भाग्य ही समझा जाएँ कि उपन्यास आज भी प्रासंगिक है। आधुनिकता के इस दौर में भी इस कृति का प्रासंगिक बने रहना, हमारे आधुनिक होने पर सवालिया निशान खड़े करता है। 

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  • सत्ता को चुनौती देने वाला 'जनकवि' : बाबा नागार्जुनसत्ता को चुनौती देने वाला 'जनकवि' : बाबा नागार्जुन

    सत्ता को चुनौती देने वाला 'जनकवि' : बाबा नागार्जुन

    पंच तत्त्वों से बने इस देहधारी के पाँच नाम हैं। गाँव और बचपन में ठक्कन और वैद्यनाथ मिसिर, फिर वैदेह जिससे 1930 में पहली मैथिली कविता प्रकाशित हुई, फिर शायद घुमक्कड़ी के लिए चुना उपनाम यात्री और बौद्ध पंथ अपनाने के बाद अपनाया नाम नागार्जुन।

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  • आंबेडकर के सपनों का हिंदुस्तानआंबेडकर के सपनों का हिंदुस्तान

    आंबेडकर के सपनों का हिंदुस्तान

    आज कसमें खाएंगे, लंबे–लंबे वादे करेंगे, चौक–चौराहों पर लगी शिलाओं पर फूल फेकेंगे। मीडिया के सामने झूठी भावुकता से भरे बयान देंगे; और मीडिया उन भाषणों के ऊपर चर्चा–परिचर्चा करके जम्हूरियत के जिंदा होने की बानगी पेश करेगा। जनता को लगेगा कि अब चंद ही लम्हों में ये नेता आंबेडकर के सपनों का हिंदुस्तान बना देंगे! जैसे ही आंबेडकर जयंती का दिन ढलता है, रात चढ़ती है, सारा जोश नेपथ्य में चला जाता है। दूसरे ही दिन, जन–सेवकों की टोली सावरकर के सपने का हिंदुस्तान बनाने की सौगंध खाकर खुद को हिंदू हृदय सम्राट के तौर पर पेश करती है। 

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  • बिहार की बाढ़ और रेणु का साहित्यबिहार की बाढ़ और रेणु का साहित्य

    बिहार की बाढ़ और रेणु का साहित्य

    साहित्य की दुनिया में प्रेमचंद की विरासत को फणीश्वर नाथ रेणु ने संभाला। रेणु ने पाठकों को प्रेमचंद की कमी नहीं खलने दी; होरी जैसे किरदारों की परंपरा बिना किसी रुकावट के निरंतर चलती रही। रेणु की कलम से जो भी लिखा गया उसमें मानवीय संवेदना और सामाजिक यथार्थ की सोंधी महक रह–रहकर आती रहती है। हिंदी साहित्य के इस ‘संत लेखक’ ने गंवई इलाकों की हकीकत को बिना भाषाई आडंबर ओढ़े, आंचलिक बोलचाल की भाषा में दर्ज किया।

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  • हमारे उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ हमारे उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ 

    हमारे उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ 

    काशी, तारीख से पुराना शहर। संस्कृति और अदब से आबाद शहर। घाटों का शहर। इस शहर के एक घाट पर बना है बालाजी का मंदिर। जिसकी दहलीज़ पर बने नौबतखाने से रोज मंगलध्वनि गूंजा करती थीं।

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  • फ़िल्म समीक्षा:- ज्विगाटोफ़िल्म समीक्षा:- ज्विगाटो

    फ़िल्म समीक्षा:- ज्विगाटो

    पिछले काफी समय से दुनियाभर में बेरोजगारी का आलम छाया हुआ है। रोजगार की चाह में गंवई इलाकों के आम लोग शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर हैं।शहरों के पास रोजगार देने की क्षमता सीमित है; ऐसे में प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है, मजदूरी और कम हो जाती है।श्रमिक, कम मजदूरी में काम करने के लिए तैयार हो जाता है। एक दिन महामारी दस्तक देती है। जिसका सबसे ज्यादा खामियाजा मजदूर वर्ग भुगतता है। जिन शहरों को शिद्दत के साथ बनाया था; वे ही शहर मजदूरों को पराया कर देते हैं।

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  • भारत, कब बनेगा हिन्दू राष्ट्र ?भारत, कब बनेगा हिन्दू राष्ट्र ?

    भारत, कब बनेगा हिन्दू राष्ट्र ?

    पिछले कुछ समय से ‘राष्ट्र के स्वरूप’ को लेकर हिंदुस्तान की फ़िज़ा में बदलाव आ रहा है। चौक–चौराहों पर, चाय के ठेलों पर, गांव के चबूतरों पर, शहर की अंधेरी गलियों में, मीडिया के वाद–विवादों में, बाबाओं के प्रवचनों में राष्ट्र के स्वरूप को फिर से परिभाषित किया जा रहा है।

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  • क़िताब की बात:- भारतीय अर्थव्यवस्था पर संजय बारू की क़िताबक़िताब की बात:- भारतीय अर्थव्यवस्था पर संजय बारू की क़िताब

    क़िताब की बात:- भारतीय अर्थव्यवस्था पर संजय बारू की क़िताब

    किताब का नाम है – इयर्स ऑफ इंडियन इकोनामी [रीइमर्ज, रीइन्वेस्ट, री इंगेज] लेखक हैं संजय बारू. किताब को छापा है रूपा पब्लिकेशन ने. क़िताब की कीमत है मात्र 395 रुपए. हाल ही में भारत ने आजादी के बाद से 75 वर्ष का सफर पूरा किया है. ये क़िताब 75 वर्षों के सफर को आर्थिक नज़रिए से समेटने की कोशिश करती है. आज का लेख इसी किताब पर आधारित है.

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  • पत्रकार कौम जरूर देखें : फिल्म ‘लॉस्ट’पत्रकार कौम जरूर देखें : फिल्म ‘लॉस्ट’

    पत्रकार कौम जरूर देखें : फिल्म ‘लॉस्ट’

    अखबार में छपी हरेक ख़बर नवीनता के आभूषण को धारण करके आती है। ये ख़बरें लिखता कौन है ? एक पत्रकार। इन अख़बारनवीस लोगों के लिए समाचार लिखना कितना आसान है? जिन ख़बरों को पाठक चन्द लम्हों में पढ़ लेता है उसके पीछे एक पत्रकार की लंबी मेहनत रहती है। एक–एक तथ्य को सजोंकर पन्ने पर छापा जाता है, हरकारा ख़बर पहुंचा देता है। इन तथ्यों को संवाददाता तक कोई शख्स थाली में परोस कर नहीं देता, उन्हें खुद ढूँढ़ने होते हैं। तलाश करने की चाहत नामा-निगार को ख़बर की तह तक पहुंचाती है। ऐसी ही एक ख़बर को छापने की चाहत में एक महिला पत्रकार कई तरह के झंझावातों से गुजरती है।

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  • आप सुन रहे हैं....रेडियोआप सुन रहे हैं....रेडियो

    आप सुन रहे हैं....रेडियो

    ढलती सरदी की देहरी पर बैठा फरवरी, प्रीत का महीना है। प्यार की दुनिया में यकीन रखने वाले लोग अपनी मोहब्बत का इज़हार करते हैं। दिल के जज्बातों को फूल की कोमल पंखुड़ियों से बने गुलदस्तें में समेट कर जाहिर करते हैं। पर मुलाकात संभव नहीं हो तो? प्यार की अविरल धारा तो सदियों से बह रही है, कभी नहीं रुकती।। पुरखे चिट्ठी लिखा करते थे। जब खत नहीं आता था तब गीत गाते थे “न चिट्ठी न संदेश न जाने कौनसे देस तुम चले गए”.

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  • समाज पर नियंत्रणसमाज पर नियंत्रण

    समाज पर नियंत्रण

    आपने इस लेख को पढ़ना शुरू किया है। अपने हाथ में मोबाइल को थामे, आप धीरे–धीरे ध्यान को केंद्रित करने की कोशिश कर रहे हैं! विषयवस्तु पर आएं उससे पहले एक प्रश्न पूछना चाहता हूं! क्या लेख पढ़ते हुए आपके मन में रति भर भी डर है कि कोई पीछे से आकर, आपकी गर्दन पर लोहे की तीखी धार न रगड़ दे? शायद आपका जवाब होगा नहीं। बिना भय के इस लेख को पढ़ पाना ही समाज के होने का द्योतक है।

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